शूरवीर रणछोड़ जी रेबारी |
देवासी, राईका, रेबारी, देसाई, मालधारी तथा भरवाड़ बंधुओं को 68 वे गणतंत्र दिवस की बधाई ।
आज हमारा भारत देश धूमधाम तथा आजादी के साथ 68 वाँ गणतंत्र दिवस मना रहा हैं ।
देश की यह आजादी हजारों क्रान्तिकारीयों तथा महापुरुषों की शहादत और मेहनत का परिणाम हैं ।
जब-जब देश पर संकट आता हैं तो इस भारत भूमि पर शूरवीरों का जन्म होता हैं ।
देवासी समाज के लिए महत्वपूर्ण इस पोस्ट में हम ऐसे ही एक शूरवीर का वर्णन कर रहे हैं , जो आजादी के बाद पाकिस्तानी सेना के साथ हुए 1965 व 1971 के युद्ध में भारतीय सेना के विजय अभियान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं ।
रेबारी समाज के इस शूरवीर का नाम हैं -
"रणछोड़ भाई रेबारी" ।
रणछोड़ भाई रेबारी हाल ही में इस कारण सुर्ख़ियों में हैं कि भारत की BSF पोस्ट का नामकरण इनके नाम से हुआ हैं ।
उत्तर गुजरात के सुईगाँव अंतराष्ट्रीय सीमा क्षेत्र की एक पोस्ट का नामकरण "रणछोड़ भाई रेबारी" के नाम से हुआ हैं ।
भारतीय इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ हैं कि देश की अंतराष्ट्रीय सीमा का नामकरण किसी आम आदमी के नाम से हुआ हैं ।
रणछोड़ भाई रेबारी का बचपन :-
रणछोड़ भाई रेबारी का जन्म पेथापुर गथड़ों गाँव में हुआ था । इनका परिवार निर्धन था । रणछोड़ भाई रेबारी के पिताजी पशुपालन तथा ऊंट चराने का काम करते थे । रणछोड़ भाई रेबारी को संस्कार व बहादुरी अपने पिताजी से विरासत में मिली थी । रणछोड़ भाई रेबारी कम उम्र में ही ऊंटो पर बैठना, ऊंट को चराना, उंटनियों का दूध दुहना, भेड़े चराना जैसे पशुपालन के कार्य सीख गये थे ।
वे अकेले ही ऊंटों तथा भेड़ों को चराने जाया करते थे ।
रणछोड़ जी रेबारी भारत-पाक सीमा पर ऊंटों को चराते हुए |
भारत-पाक विभाजन :-
अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद भारत का बंटवारा हो गया और इस दुनिया के नक़्शे पर एक नए क्रूर तथा आतंक देश पाकिस्तान के जन्म हुआ । इस भारत-पाक बंटवारे के कारण रणछोड़ भाई रेबारी का गाँव पेथापुर गथड़ों पाकिस्तान में चला गया और वर्तमान में भी पाकिस्तान में ही स्थित हैं ।
इस दर्दनाक बंटवारे के बाद पाकिस्तान सेना हिंदुओं तथा ऊंट और भेड़ चराने वाले पशुपालकों के साथ राक्षसों की भांति व्ययहार करने लगी । पाकिस्तान सेना के इस व्यवहार से तंग आकर रणछोड़ भाई रेबारी अपने ऊंटो और भेड़ों को लेकर भारत आ गए हैं और गुजरात के बनासकाठा में आकर बस गए हैं ।
1965 और 1971 के युद्ध में रणछोड़ जी रेबारी की महत्वपूर्ण भूमिका :-
आजादी के बाद से ही भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के मध्य व्यवहार तनाव से भरा था । सीमाओं पर बढ़ते इस तनाव के कारण भारत और पाकिस्तान के बीच सन 1965 में युद्ध की स्थिति बन गयी और दोनों सेनाएँ आमने-सामने हो गयी हैं । इस युद्ध की शुरुआत में पाकिस्तान सेना ने भारत के गुजरात में कच्छ सीमा स्थित विधकोट थाने पर कब्ज़ा कर लिया , इस मुठभेड़ में लगभग 100 भारतीय सैनिक शहीद ही गये थे । और भारतीय सेना की एक 10 हजार सैनिकों वाली टुकड़ी को तीन दिन में छारकोट पहुँचना जरूरी था । भारतीय सेना को पाकिस्तान के रास्तों की जानकारी नही थी और ऊपर से पाकिस्तानी सेना वहाँ तैनात थी । छारकोट पहुँचना भारतीय सेना के लिए टेढ़ी खीर साबित हो गया था । संकट की इस कड़ी में ऊंटों और भेड़ों को चराने वाले और भारत-पाक के सभी रास्तों के जानकार रणछोड़ जी रेबारी ने भारतीय सेना को न सिर्फ रास्ता दिखाया बल्कि पाकिस्तानी सैनिकों की लोकेशन भी बताई । रणछोड़ भाई रेबारी ने अपने इस गुप्त ऑपरेशन कार्य की किसी भी पाकिस्तानी सैनिक की कान में भनक नही पड़ने दी । रणछोड़ भाई रेबारी के इस महत्वपूर्ण कार्य की बदौलत भारतीय सेना ढाई दिन में ही छारकोट पहुच गयी ।
रणछोड़ जी रेबारी गुप्त तरिके से भारतीय सेना को बम पहुँचाते हुए |
इस दौरान रणछोड़ भाई रेबारी ऊंट पर सवार होकर पाकिस्तान में रह रहे रिश्तेदारों तथा आस-पास के ग्रामीणों से पाकिस्तानी सेना की लोकेशन पता करके 1200 पाकिस्तानी सैनिकों की जानकारी गुप्त तरीके से भारतीय सेना को दी जिसके कारण भारतीय सेना पर एक बड़े हमले की साजिश नाकाम ही गयी हैं । इस युद्ध में रणछोड़ भाई रेबारी अपने ऊँटो की मदद से भारतीय सेना को गोला-बारूद तथा भोजन सामग्री पहुँचाने का काम भी बिलकुल गुप्त तरीके किया । और उनकी इस मदद तथा भारतीय वीर सैनिकों के साहस के परिणामस्वरूप भारत ने 1965 के ऐतिहासिक युद्ध में पाकिस्तान की सेना के दाँत खट्टे कर दिए जिससे पाकिस्तान सेना झुकने को तैयार हो गयी और उसने हार मान ली । और भारतीय सेना ने 1965 के युद्ध में विजयी परचम फहराया ।
रणछोड़ जी रेबारी गुप्त तरिके से भारतीय सेना को बम पहुँचाते हुए |
"पागी" के नाम से जाने जाते थे रणछोड़ जी :-
भारत में आम बोलचाल की भाषा में रास्ता दिखाने या मार्गदर्शन करने वालों को पागी कहा जाता हैं । युद्ध में भारतीय सेना को रास्ता दिखाने के कारण भारतीय सैनिक तथा भारतीय जनरल मानेक शॉ रणछोड़ जी रेबारी को "रणछोड़ दास पागी" और "रणछोड़ जी पागी" के नाम से पुकारते थे।
रणछोड़ जी रेबारी की मातृभूमि के प्रति सेवा और समर्पण के भाव के कारण उन्हें जनरल मानेक शॉ द्वारा भारतीय सेना के मार्गदर्शक के रूप में "पागी" के पद पर नियुक्त किया गया । इसके बाद रणछोड़ जी रेबारी "पागी" के रूप में जाने लगे ।
जनरल सैम मानेक शॉ, जो रणछोड़ जी को अपना हीरो मानते थे |
जनरल मानेक शॉ के हीरो थे "पागी" :-
भारतीय सेना की मदद के कारण रणछोड़ जी रेबारी भारतीय जनरल मानेक शॉ के आदर्श बन गये। और रणछोड़ जी रेबारी जनरल मानेक शॉ के करीबी बन गए । इस बात का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता हैं कि एक बार जनरल मानेक शॉ ने उन्हें डिनर पर आमंत्रित किया, क्योंकि मानेक शॉ बहुत कम लोगों को ही अपने साथ डिनर पर आमंत्रित करते थे । जनरल मानेक शॉ रणछोड़ जी रेबारी के पूरी तरह दीवाने हो गए थे । और रणछोड़ जी को अपना हीरो मानने लगे । सन 2008 में 27 जून को मानेक शॉ का निधन हो गया , लेकिन अपने जीवन के अन्तिम क्षणों में भी वे रणछोड़ जी को नही भूले और वे चेन्नई के वेलिंग्टन अस्पताल में बार-बार "पागी" का नाम लेते थे । तो डॉक्टर बोले- Who is "Pagi" ? तब जनरल मानेक शॉ ने उन्हें रणछोड़ जी की पूरी कहानी बताई तो सभी चिकित्सक भी अचंभित रह गए ।
जनरल सैम मानेक शॉ, जो रणछोड़ जी को अपना हीरो मानते थे |
जब रणछोड़ जी की थैली की लिए वापस उतर हेलीकाप्टर :-
1965 के युद्ध के बाद भारत-पाक के बीच 1971 में एक बार पुनः युद्ध हुआ जिसमें भारतीय सेना ने फिर से विजयी परचम फहराया । इसी युद्ध के परिणामस्वरूप एक नए राष्ट्र "बांग्लादेश" का जन्म हुआ ।
1971 के युद्ध के बाद रणछोड़ जी रेबारी एक साल नगरपारकर में रहे थे । तब मानेक शॉ ने उन्हें डिनर पर आमंत्रित किया और रणछोड़ जी के लिए एक हेलीकाप्टर भेजा । रणछोड़ जी को लेकर हेलीकॉप्टर जब उड़ान भरने लगा तो रणछोड़ जी को याद आया कि वे अपनी थैली नीचे ही भूल गए तो हेलिकॉप्टर को पुनः नीचे उतरवाया और थैली लेकर वापस हेलीकॉप्टर से उड़ान भरी । जब सब ने देखा कि थैली में क्या हैं तो पाया कि उस थैली में दो रोटी , एक प्याज तथा बेसन का एक पकवान (गाठिया) था । यह सब देखकर सभी लोग उनको सलाम करने लगे ।
ये पुरुष्कार मिले रणछोड़ जी को :-
रणछोड़ जी की राष्ट्र के प्रति अटल भक्ति तथा समर्पण के भाव के कारण उनको राष्ट्रपति पुरुष्कार से नवाजा गया । इसके अलावा रणछोड़ जी रेबारी को सेना के वीरता पुरुष्कार, बहादुरी पुरुष्कार सहित अनेक पुरुष्कार प्रदान किये गए ।
रणछोड़ जी रेबारी ने भारत-पाक सीमा पर ऊंटों को चराते हुए पाकिस्तानी सेना की जासूसी की थी । |
112 वर्ष की आयु में निधन :-
सन 2009 में रणछोड़ जी ने सेना के "पागी" पद से अपनी इच्छा के अनुसार सेवानिवर्ती ले ली । और जनवरी 2013 में 112 साल की उम्र में रणछोड़ जी का निधन हो गया । और रेबारी समाज का राष्ट्रभक्त शूरवीर हमेशा के लिये इस सँसार को छोड़ दिया । हालांकि रणछोड़ जी रेबारी भारत में एक शरणार्थी की तरह आये थे, लेकिन अपनी देशभक्ति, वीरता, बहादुरी, त्याग, समर्पण, शालीनता के कारण भारतीय इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गए तथा भारतीय समाज पर अपनी अमिट छाप छोड़ दी ।
रणछोड़ जी रेबारी का जीवन हमें देश और समाज की सेवा करने को प्रेरित करता हैं ।
रणछोड़ जी रेबारी अपने जीवन के अंतिम काल तक रेबारी समुदाय की तरह सादगी, अनुशासन, संस्करों, शालीनता, प्रेम से रहे हैं , लेकिन दुःख की बात यह हैं कि इतने बड़े शुरवीर होने के बावजूद आज रेबारी, देवासी, राईका, देसाई, मालधारी तथा भरवाड़ समाज के लोग रणछोड़ जी को जानते तक नही हैं ।
रणछोड़ जी रेबारी अपने पूरे जीवन में अपने काम खुद ही करते थे |
देवासी समाज की इस वेबसाइट dewasisamaj.com के लेखकों ने कड़ी मेहनत करके उनके जीवनी को अपने शब्दों में पिरोकर सरल भाषा में तथा तर्क सहित आप सभी के सामने प्रस्तुत किया हैं । हमें उम्मीद हैं कि सदा के लिए अमर होने वाले शूरवीर व महान देशभक्त रणछोड़ जी रेबारी की जीवनी आपको बहुत पसंद आयी होगी ।
हम आप सबसे आशा करते हैं कि 26 जनवरी के इस देशभक्ति माहौल में आप सभी समाजबंधु इस पोस्ट को अधिक से अधिक संख्या में शेयर करोगे ताकि हमारे रेबारी, देवासी, राईका समाज के सभी लोग रणछोड़ जी रेबारी के बारे में जान सके ।रणछोड़ जी रेबारी अपने जीवन के अंतिम क्षणों में । हाथ में सेना द्वारा दिए गए मैडल हैं । |
शूरवीर तो बहुत हुए , लेकिन
वीर रणछोड़ जी सा जग में
होगा न बारम्बार ।
इन्ही शब्दों के साथ हम रणछोड़ जी की शहादत को अपने शब्दों से अंजली देते हैं ।
धन्यवाद आप सभी का ।
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