देवासी समाज इतिहास

मानव जाति की उत्पत्ति के इतिहास की भॉति ही हर जाति एवं समाज का इतिहास भी पहेली बना हुआ है। मानव की उत्पत्ति के इतिहास कीभॉति ही हर जाति एवं उपजाति की उत्पत्ति काइतिहास भी एक गूढ़ रहस्य बना हुआ है। विभिन्न जातियों की उत्पत्ति के बारे मे या तो इतिहास मौन है या इतिहासकारों ने आपसी विवादों और तर्क – वितर्कों का ऐसा अखाड़ा बना रखा है कि इस प्रकार के विभिन्न मत मातान्तरों का अध्ययन करने पर भी सच्चाई तक पहुंच पाना दुर्लभ नही कठीन अवष्य है। अगर हम हमारे देश के प्राचीन इतिहास को उठाकर देखें तो वैदिक काल में यहा पर कोई जाति प्रथा नहीं थी। समाज को सुव्यवस्थित ढंग से चार वर्णों - ब्राह्मण, क्षेत्रिय, वैष्य, शूद्र में बॉंटा गया था यह वर्ण व्यवस्था व्यक्ति के जन्म संस्कारो पर आधारित न होकर कर्म संस्करों पर आधारित थी। सच ही कहा है- व्यक्ति जन्म से नहीं , कर्म से महान बनता है।


देवासी की उत्पत्ति और इतिहास

रेबारी, राईका, देवासी, देसाई या गोपालक के नाम से जानी जाती यह जाति राजपूत जाति में से उतर कर आई है। ऐसा कई विद्वानो का मानना है। रेबारी को भारत में रायका, देसाई, देवासी, धनगर, पाल, हीरावंशी, कुरुकुरबा, कुरमा, कुरबरु, गडरिया, गाडरी, गडेरी, गद्दी, बधेल के नाम से भी जाने जाते है।
  यह जाति भोली भाली और श्रद्धालु होने से देवों का वास इनमें रहता है या देव के वंशज होने से इन्हें देवासी के नाम से भी जाना जाता है। रेबारी शब्द मूल रेवड शब्द मे से उतर कर आया है। रेवड़ यानि जो ढोर या पशु या गडर का टौला और पशुओ के टोले को रखता है उसे रेवाड़ी के नाम से पहचाना जाता हैं और बाद मे अपभ्रंश हो जाने से यह शब्द रेबारी हो गया। रेबारी पूरे भारत में फैले हुए है, विशेष करके उत्तर पश्चिम और मध्य भारत में। वैसे तो पाकिस्तान मे भी अंदाजित 8000 रेबारी है।
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     रेबारी जाति का इतिहास बहुत पूराना है लेकिन शुरू से ही पशुपालन का मुख्य व्यवसाय और घुमंतू (भ्रमणीय) जीवन होने से कोई आधारभुत ऐतिहासिक ग्रंथ लिखा नहीं गया और अभी जो भी इतिहास मिल रहा है वो दंतकथाओ पर आधारित है।  मानव बस्ती से हमेशा दूर रहने से रेबारी समाज समय के साथ परिवर्तन नही ला सका है। अभी भी इस समाज में रीति-रिवाज, पोशाक ज्यों का त्यों रहा है। 21वीं सदी में शिक्षित समाज के संम्पर्क मे आने से शिक्षण लेने से सरकारी नौकरी, व्यापार, उद्योग, खेती वगैरह जरूर अपनाया है।
       हर जाति की उत्पत्ति के बारे में अलग अलग राय होती है वैसे ही इस जाति के बारे में भी कई मान्यताएँ है। इस जाति के बारे में एक पौराणीक दंतकथा प्रचलित है- कहा जाता है कि माता पार्वती एक दिन नदी के किनारे गीली मिट्टी से ऊँट जैसी आकृति बना रही थी तभी वहाँ भोलेनाथ भी आ गये। माँ पार्वती ने भगवान शिव से कहा- हे महाराज! क्यो न इस मिट्टी की मुर्ति को संजीवीत कर दे। भोलेनाथ ने उस मिट्टी की मुर्ति (ऊँट) को संजीवन कर दिया। माँ पार्वती ऊँट को जीवित देखकर अतिप्रसन्न हुई और भगवान शिव से कहा-हे महाराज! जिस प्रकार आप ने मिट्टी के ऊँट को जीवित प्राणी के रूप में बदला है, उसी प्रकार आप ऊँट की रखवाली करने के लिए एक मनुष्य को भी बनाकर दिखलाओ। आपको पता है उसी समय भगवान शिव ने अपनी नजर दोड़ायी सामने एक समला का पेड़ था। समला के पेड़ के छिलके से भगवान शिव ने एक मनुष्य को बनाया। समला के पेड से बना मनुष्य सामंड गौत्र(शाख) का रेबारी था। आज भी सामंड गौत्र रेबारी जाति में अग्रणीय है। रेबारी भगवान शिव का परम भगत था।
       शिवजी ने रेबारी को ऊँटो के टोलो के साथ भूलोक के लिए विदा किया। उनकी चार बेटी हुई, शिवजी ने उनके ब्याह राजपूत (क्षत्रीय) जाति के पुरुषो के साथ किए और उनकी संतती हुई वो हिमालय के नियम के बाहर हुई थी इस लिए वो “राहबारी” या “रेबारी” के नाम से जानी जाने लगी।
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    एक मान्यता के अनुसार मक्का- मदीना के इलाको मे मुहम्मद पैगम्बर साहब से पहले जो अराजकता फैली थी जिनके कारण मूर्ति पूजा का विरोध होने लगा। उसके परिणाम से इस जाति का अपना धर्म बचाना मुश्किल होने लगा। तब अपने देवी-देवताओं को पालखी मे लेकर  हिमालय के रास्ते से भारत में प्रवेश किया था। अभी भी कई रेबारी अपने देवी- देवताओं को मूर्तिरूप प्रस्थापित नहीं करते पालखी मे ही रखते है। उसमें हूण और शक का टौला भी शामिल था। रेबारी जाति में आज भी हूण अटक (Surname) है। इससे यह अनुमान लगाया जाता है की हुण इस रेबारी जाति मे मिल गये होंगे।
         एक ऐसा मत भी है की भगवान परशुराम ने पृथ्वी को 21 बार क्षत्रीय विहीन किया था तब 133 क्षत्रीयों ने परशुराम के डर से क्षत्रिय धर्म छोड़कर पशुपालन का काम स्वीकार लिया इसलिए वो विहोतर के नाम से जाने जाने लगे। विसोतर या विहोतर का अर्थ- (बीस + सौ + तेरह) मतलब विसोतर यानी 133 गौत्र।

      रेबारी जाति का मुख्य व्यवसाय पशुपालन होने के बाद भी महाभारत युग से मध्य राजपूत युग तक राजा महाराजाओं के गुप्त संदेश पहुँचाने का काम तथा  बहन-पुत्री और पुत्रवधुओं को लाने या छोडने जाने हेतु अति विश्वासपूर्वक रेबारी का उपयोग ही किया जाता था। ऐसी कई घटनाए इतिहास के पन्नो में दर्ज है।  पांडवो के पास कई लोग होने के पश्चात भी महाभारत के युद्ध के समय विराट नगरी के हस्तिनापुर एक रात मे सांढणी ऊँट पर साढे चार सौ मील (४५०मील ) की दूरी तय कर गाण्डीव धारी अर्जुन की पुत्रवधु उत्तरा को सही सलामत पहुँचाने वाला "रत्नो रेबारी" था।
 भाट, चारण और वहीवंचियों ग्रंथो के आधार पर मूल पुरुष को 16 लड़कियां हुई और उन 16 लड़कियों का ब्याह 16 क्षत्रिय कुल के पुरुषो साथ किया गया जो हिमालय के नियम के बाहर से थे सोलह के जो वंसज हुए वो "राहबारी" और बाद मे राहबारी का अपभ्रंश होने से "रेबारी" के नाम से पहचानने लगे। बाद मे सोलह की जो सन्तान हुई वो एक सौ तैतीस शाखा में बिखर गई जो विशोतर नात याने एक सौ बीस और तेरह से जानी गई। प्रथम यह जाति रेबारी से पहचानी गई लेकिन वो राजपुत्र या राजपूत होने से रायपुत्र के नाम से और रायपुत्र का अपभ्रंश होने से "रायका" के नाम से गायों का पालन करने से गोपालक के नाम से महाभारत के समय मे पाण्डवों का महत्वपूर्ण काम करने से "देसाई" के नाम से भी यह जाति पहचानी जाने लगी। पौराणिक बातो में  जो भी हो, किंतु इस जाति का मूल वतन एशिया मायनोर रहा होगा जहाँ से आर्य भारत भूमि मे आये थे। आर्यो का मुख्य व्यवसाय पशुपालन था और रेबारी का मुख्य व्यवसाय आज भी पशुपालन हैं इसलिए यह अनुमान लगाया जाता है की आर्यो के साथ यह जाती भारत में आयी होगी।
      जब भारत पर मुहम्मद गजनवी ने आक्रमण किया था तब उसका वीरता पूर्वक सामना करने वाले महाराजा हमीर देव का संदेश भारत के तमाम राजाओं को पहुँचाने वाला सांढणी सवार रेबारी ही तो था।
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      जूनागढ के इतिहासकार डॉ  शंभुप्रसाद देसाई ने नोंधट की है कि वे रावल का एक बलवान रेबारी हमीर मुस्लिमो के शासक के सामने खुशरो खां नाम धारण करके सूबा बना था जो बाद मे दिल्ली की गद्दी पर बैठ कर  सुलतान बना था। सन 1901 मे लिखा गया बोम्बे गेझेटियर मे लिखा है की रेबारीओं की शारीरिक मजबूती देख के लगता है की शायद वो पर्शियन वंश के भी हो सकते है और वो पर्शिया से भारत मे आये होंगे रेबारीओं मे एक आग नाम की शाख है और पर्शियन आग अग्नि के पूजक होते हैं।
Taken from- Surat Dewasi Samaj

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धन्यवाद।।

50 comments:

  1. Jay ho DEWASI samaj ki...
    Very proud history of DEWASI samaj.

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    1. Pehli baar apna khud ka itihaas pada hai bhai Jai ho dewasi samaj Jai ho gadariya samaj

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    2. bilkul sahi darsaya hai aap ne or ek or histry hai jaisalmer ke bhati vansh ko bachane wale dewasi hi tha jisne uthni par bhati ko bikaner se leke gaya sirf ek hi bhati tha jisko apni bhuwa ne dewasi ke hawale kiya or bola mera batij hai mere kul me sirf ye ek hi balak hai jisko leke jao yaha se nahi to mara jayega tab dewasi ne sirf ek chote balak bhati ko uth pe betha ke uski jaan bachai thi usi bhati ka vansej jaisalmer pe raj kiya or aage bada asa kahna hai purane logo ka etihash

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    3. Aaj main pahli bar Apne devasi samaj ka itihaas padha Ho aur apne aap mein bahut hi Garu mahsus kar raha hun ki hamara devasi samaj yah aajkal ka nahin bahut purane aur Mahabharat ke samay se devasi samaj tha is chij ka bhi Anubhav Aaj hua hai hamen bahut Garv ki baat hai Jay Ho devasi samaj ki aur is itihaas se bahut kuchh mujhe sikhane Ko Mila hai ki bahut sari chijen jo maine itihaas mein padhi hai hakikat mein main matlab bahut kuchh chijen hai jo likhane mein mujhe Aaj time lag raha hai per vakya mein bahut kuchh sikha hun aur main koshish karunga ki Apne purvajon ki tarah jindagi jeene ka Jo aisi hamari bholi Bhali samaj per Raja maharajaon ne Jo Vishwas kiya tha vakya mein bahut kuchh sikhane ke liye Mila hai hamen

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    4. Aapne dewasi samaj ka bhut hi acha itihass btaya he or aage bhi hmare samaj se jude rhe

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  2. I fill proud to be Dewasi... Great history about Dewasi.. If we get correct information about Dewasi समाज then it will gud for us.. I want to get the perfect knowledge where the Dewasi समाज start from whom start and also i have to get information about how so many गोत्र divided

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  3. this is fake and wrong history by bharat dewasi

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    1. Right brother ye sab chutiya bana rahe raika ek kshtriya cast hai

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  4. Im very happy that I m
    Devasi i love my devasi samaj we are not one we are

    Hiravanshi
    Maldhari
    Raika
    Devasi
    Desai
    Rabari

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  5. Jay mataji ri sa Jay DEWASI samaj

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    1. Sale dewasi koi samaj nahi je,marvadi ki padvi he.

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  6. 57 number wala wrong hai, jadeja Sindhi aur Baloch hai, Rabari mein nahi aata ye gotra

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  7. Abe tutu jis rajput ki bat kar raha hai uska itihas to dekh le ek baar, ye rajput koi jati nahi thi pehle, abhi kuch salo se hi bani hai, in logo ne Charan aur BrahmaBrahman logo se story banvayi taki unko purane kshtriyo se joda ja sake, baki purane Kshatriya jab the na tab ye rajput janme bhi nai the, Purane Kshatriya hai kuru, Bharat, trstu, puru, anu, druhyu, bahlika, vrishni, satvata, andhak, bhoj etc.

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  8. ये दंत कथा मात्र सांत्वना है.. इतिहास एक अलग बात होती हैं जिस गहन शोध करके पता करना पड़ता है... इतिहास के देवासी बंधुओ को चाहिए इस पर खोज जारी रखो तथा पुख्ता प्रमाण लाओ...

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  9. मुझे गर्व है कि मैं गड़रिया हूँ

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  10. मुझे गर्व है कि मैं गड़रिया हूँ

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  11. Rabari को गडरिया के साथ मत जोड़ों गलत है।

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  12. रबारी को गडरिया के साथ मत जोड़ो।

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  13. मनगढ़ंत झुठा इतिहास है हमारे समाज को इस इतिहास से कोई लेना देना नहीं है

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  14. ashok dewasi meda

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  15. Very good samaj he or deve ka vas he

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  16. मुझे मेरी समाज पर गर्व है

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  17. Mujhe meri samaj per Garv hai

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  18. I proud of you rebari samaj

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  19. रेबारी समाज से संबंधित कोई किताब हो तो बताएं

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  20. Shivlal Rabari. 54

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  21. एकदम जुट इतिहास क्षत्रिय नहीं है।।

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  22. देवासी समाज अपनी संस्कृति और वेशभूषा को बचाए रखने मे अग्रणी है। ये समाज बहुत ही सरल स्वभाव के होते हैं।

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  23. आ पोस्ट भूघळी करेने ढ@#को में गाल@पी

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  24. Samaj ka bhut hi acha itihass btaya aapne aapko tahe dil se dhayewad

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  25. बहुत ही बड़िया

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  26. Wrong information, hamara rajputo we koi Lena Dena nhi hai.

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  27. अशोक देवासी दुधाबेरा

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  28. Ashok rabarii dudhabera RKD balesar shergarh jodhpur rajasthan 9380990900

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  29. Makwana dewasi ke baare me bataye

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  30. शारीरिक मजबूती वाली बात 100% सही है। मैंने देखा है इस समाज के अधिकांश स्त्री पुरुष गौरे लम्बे और मजबूत होते हैं। जबकि वो धूप में रहते है।

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  31. We don't came from rajput.... they came from us when parsurama killed all rajputana from earth they hide to dewasi

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